क्या है आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी?
इस कहानी की शुरुआत होती है 1992 में. सिरोही के एक रिटायर ग्रामसेवक जी थे. नाम था प्रकाश राज मोदी. संघ की तरफ रुझान था. सरकारी नौकरी से निवृत होने के बाद संघ के किसान मोर्चे ‘भारतीय किसान संघ’ से जुड़ गए. सिरोही जिला के संयोजक बना दिए गए. समाज में छवि ठीक थी. 1990 में भैरो सिंह शेखावत के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. दशकों सत्ता से बाहर रहे संघ परिवार ने तमाम संस्थाओं में घुसपैठ करना शुरू किया. 1992 में ‘दी सिरोही अर्बन कमर्शियल बैंक’ के चुनाव हुए. उस समय बैंक की प्रबंधन समिति में 9 सदस्यों का चुनाव होता था. ये सदस्य मिलकर इस बैंक के चेयरमैन का चुनाव करते थे. प्रकाश राज मोदी पहले बैंक की प्रबंध समिति के सदस्य चुने गए. इस चुनाव में कुल 9 में से 7 सदस्य ऐसे थे जिनका रुझान संघ या बीजेपी की तरफ था. प्रकाश राज मोदी को प्रबंध समिति का अध्यक्ष बना दिया गया. अगले पांच साल इसी प्रबंध समिति को बैंक का प्रबंधन देखना था.
साल 1994. प्रकाश राज मोदी का इंतकाल हो गया. सहकारी समिति में प्रबंध समिति चलाने के कुछ कायदे हैं. इसमें से एक नियम यह कि अगर प्रबंध समिति के किसी सदस्य का निधन हो जाता है या वो अपने पद से इस्तीफ़ा दे देता है तो उसकी जगह पर सहकारी समिति के किसी और सदस्य को प्रबंध समिति का सदस्य बना दिया जाता है. नए सिरे से चुनाव नहीं करवाए जाते. यही वो मोड़ था जिसने इस सहकारी बैंक के मुस्तकबिल को बदल दिया. प्रकाश मोदी की मौत के बाद उनके बड़े बेटे मुकेश मोदी को प्रबंध समिति का सदस्य मनोनीत किया गया और उन्हें सर्वसम्मति से प्रबंध समिति का अध्यक्ष चुन लिया गया.

प्रबंध समिति का अध्यक्ष बनते ही मुकेश ने सबसे पहले बैंक का नाम बदलने की कवायद शुरू की. रिजर्व बैंक को अर्जी देकर ‘दी सिरोही अर्बन कमर्शियल बैंक’ का नाम बदलकर ‘माधव नागरिक सहकारी बैंक’ रख दिया गया. यह नाम आरएसएस के दूसरे सरसंघ चालक माधव सदाशिव गोलवलकर के नाम पर रखा गया था. मुकेश के इस एक कदम ने उन्हें आरएसएस के स्थानीय नेतृव की आंख का तारा बना दिया. यह बहुत सोचा-समझा कदम था. मुकेश खुद के लिए जरुरी राजनीतिक संरक्षण हासिल करने में कामयाब रहे. इसी राजनीतिक संरक्षण के दम पर उन्होंने अपने भाई वीरेंद्र मोदी को सिरोही नगर पालिका का अध्यक्ष भी बनवाया.
साल 1999. मुकेश ‘माधव नागरिक सहकारिता बैंक’ की प्रबंध समिति से हट चुके थे. उन्होंने अपनी जगह अपने भाई वीरेंद्र मोदी को प्रबंध समिति का अध्यक्ष बनवा दिया. 1999 में मुकेश ने ‘क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी’ खोली. नाम रखा ‘आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी’. यह सोसायटी मुख्य रूप से लोन देने का काम करती थी. लेकिन लोन देने के लिए इसके पास पैसा कहां से आता? दरअसल यह सहकारी समिति अपने सदस्य बनाती थी. ये सदस्य समिति के शेयर होल्डर होते थे. ये समिति में अपना कुछ पैसा निवेश करते. सोसायटी इस पैसे को सूद पर देती है. सूद के तौर पर जो मुनाफा आता है वो सोसायटी के शेयर होल्डर्स में बांट दिया जाता है.
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कोऑपरेटिव सोसाइटी की ऑनलाइन शिकायत निम्न प्रकार से कर सकते है
सर्व प्रथम सहकार विभाग की वेबसाइट खोलेंगे
http://www.rajsahakar.rajasthan.gov.in/
इसके पश्चात क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी की शिकायत दर्ज करे पर क्लिक करे

2. इसके पश्चात आपकी आधार संख्या दर्ज करे जहाँ आपके रजिस्टर्ड मोबाइल पर ओटीपी भेजा जाएगा जिसे दर्ज करने के पश्चात डिटेल फॉर्म खुलेगा

इसके पश्चात डिटेल फॉर्म में अपनी सूचनाये भरकर सबमिट कर दीजिये आपकी शिकायत ऑनलाइन हो गयी है

इस शिकायत को आप ईमित्र पर या स्वयं भी भर सकते है